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International Journal of Physiology, Exercise and Physical Education
Peer Reviewed Journal

Vol. 7, Issue 1, Part A (2025)

भारतीय शिक्षा विकास में योग शिक्षा

Author(s):

शिल्पा एम्. वाला

Abstract:

वैज्ञानिक एवं तकनीकी स्तर पर मनुष्य अविश्वसनीय रूप से आगे बढ़ गया है परन्तु स्वयं वह आज भी वहीं है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं आया है। वह आज भी हजारों वर्षों से लड़ाकू, लोभी, ईर्ष्यालू, क्रोधी, तनाव एवं दुःखों से बोझिल ही है तथा इन सबका स्तर बढ़ता ही जा रहा है। हमारे ऋषियों ने अपने शरीर को सात चक्रों में देखा था और कई प्रकार के योग मार्ग बताए- हठयोग, मन्त्रयोग, राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग और ध्यानयोग। यहाँ कुण्डलिनी योग, जिसमें शरीर को 7 चक्रों में बताया है जो निम्न प्रकार से है:- 1. मूलाधार, 2. स्वाधिष्ठान, 3. मणिपूर, 4. अनाहत, 5. विशुद्धि, 6. आज्ञाचक्र, तथा 7. सहस्त्रार । तनावयुक्त जीवनशैली तथा भोग विलासिता ने मनुष्य की दिनचर्या को एक मशीन की भांति बना दिया है। जिस प्रकार से मशीन निरन्तर कार्य करती है उसी प्रकार से मानव भी अपने जीवन में भौतिक सुखों की लालसा में निरन्तर लगा हुआ है। आज प्रत्येक व्यक्ति की यह तमन्ना रहती है कि मैं सुख- चैन व खुशी से रहूँ। परन्तु वह उसके लिए कुछ भी प्रयत्न और प्रयास नहीं करना चाहता। आधुनिक युग में, हमने अपने चारों ओर के विश्व के ज्ञान और विश्लेषण को अपना विषय बनाया, यही विज्ञान है। हमारे प्राचीन ऋषियों ने मनुष्य और जगत का सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य समझने के लिए अन्तर्जगत अर्थात् मन, जीवन, बुद्धि, भाव, अहम्, चेतना एवं आत्मा के अनुसन्धान की आवश्यकता को पहचाना था। उन्होंने अपने अन्दर प्रयोग किये थे और आन्तरिक और बाह्य प्रकृति के रहस्यों को प्रकट किया था। इस प्रकार ऋषियों ने आत्म अन्वेषण के लिये व्यापक संभावनाओं का क्षेत्र ध्यान एवं मौन के द्वारा खोला था।

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International Journal of Physiology, Exercise and Physical Education
How to cite this article:
शिल्पा एम्. वाला. भारतीय शिक्षा विकास में योग शिक्षा. Int. J. Physiol. Exercise Phys. Educ. 2025;7(1):33-36. DOI: 10.33545/26647249.2025.v7.i1a.147
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